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राजस्थान के बाड़मेर में खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मुफ्त राशन योजना में विवाद खड़ा हो गया है.

‘हमारे पास तो साइकिल भी नहीं’ घर में वाहन दिखाकर डीलर काट रहा गरीबों का नाम; परिवारों की प्रशासन से गुहार

राजस्थान के बाड़मेर में खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मुफ्त राशन योजना में विवाद खड़ा हो गया है. जिसमें रसद विभाग ने 6,646 लोगों को अपात्र घोषित किया, लेकिन इसमें कई गरीब परिवारों को भी गलत तरीके से योजना से हटा दिया गया है.

 

राजस्थान के बाड़मेर जिले में खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत गरीबों को मुफ्त राशन देने वाली योजना में बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. रसद विभाग ने हाल ही में एक सूची जारी की, जिसमें 6,646 लोगों को अपात्र बताया गया. सूची में शामिल कई परिवारों का कहना है कि उनके पास न तो निजी वाहन है और न ही आर्थिक स्थिति ऐसी है कि वे इस योजना के लिए अपात्र हों. इन परिवारों के लिए मुफ्त राशन दो वक्त की रोटी का एकमात्र सहारा था. अब नाम कटने और राशन की वसूली के डर से ये लोग परेशान हैं.

वृद्धावस्था पेंशन ही एकमात्र सहारा

बाड़मेर जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर बलाऊ गांव के 70 वर्षीय जेठाराम की कहानी दिल दहलाने वाली है. जेठाराम बताते हैं कि उनके पास सिर्फ थोड़ी सी खेती, एक गाय और कुछ बकरियां हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना से बना उनका मकान और वृद्धावस्था पेंशन ही उनकी आजीविका का आधार है.

राशन डीलर ने बताया कि उनके नाम पर वाहन दर्ज है, इसलिए उनका नाम खाद्य सुरक्षा योजना से हटाया जा रहा है. जेठाराम का कहना है, “हमारे पास तो साइकिल भी नहीं, फिर वाहन कहां से आया? इस राशन से हमारा चूल्हा जलता था.”

बेटी की पढ़ाई और गुजारा दोनों दांव पर

इसी गांव की लूणी देवी की स्थिति भी दयनीय है. उनके पति की मृत्यु 2007 में हो चुकी है. 18 साल की बेटी की पढ़ाई और घर का खर्च मनरेगा की मजदूरी से चलता है. लूणी देवी का घर भी पीएम आवास योजना से बना है. दो साल पहले बड़ी मुश्किल से उनका नाम खाद्य सुरक्षा योजना में जुड़ा था.

लेकिन अब वाहन का हवाला देकर उनका नाम हटाने की बात हो रही है. लूणी देवी कहती हैं, “घर में साइकिल तक नहीं, फिर वाहन कहां से? सरकार हमारी गुहार सुने.”

टीन के छप्पर में बीता रहे जिंदगी

बलाऊ गांव के वगताराम की हालत भी कम दुखद नहीं है. टीन के शेड और झोपड़ी में रहने वाला यह परिवार दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर है. वगताराम बताते हैं कि उनके पास कोई वाहन नहीं, फिर भी उनका नाम अपात्रों की सूची में है. रोजगार के लिए उन्हें बाड़मेर शहर जाना पड़ता है. वे कहते हैं, “इस राशन से परिवार का पेट भरता था, अब ये भी छिन रहा है.”

बिना जांच के सूची गलत

गांव के जनप्रतिनिधि दिलीप बैरड़ का कहना है कि बिना जांच के यह सूची जारी की गई, जिसमें कई जरूरतमंदों के नाम गलत तरीके से शामिल हैं. वे कहते हैं, “लोग राशन डीलर और रसद विभाग के चक्कर काट रहे हैं. सरकार को इस पर ध्यान देना होगा.”

जांच के बाद होगी कार्रवाई

जिला रसद अधिकारी ने बताया कि यह सूची आधार सीडिंग के आधार पर बनाई गई है, जिसमें खामियां हो सकती हैं. उन्होंने आश्वासन दिया कि सूची की जांच होगी और किसी का नाम बिना जांच के नहीं काटा जाएगा और न ही कोई वसूली होगी.

SHUBHDA SHAKTI
Author: SHUBHDA SHAKTI

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